अमिताभ पार्क नॉएडा , पहली छोटी यात्रा

आज अपने लैपटॉप पर कुछ पुराने फोटो देख रहे थे इसी सिलसिले में नजर अपनी अमिताभ पार्क नॉएडा में स्थित यात्रा फोटो पर पड़ी । एक रोचक बात यह थी की पढ़ाई के बाद नॉएडा आने के बाद यह मेरी पहली छोटी यात्रा रही । मन हुआ चलो उन यादों को एक बार लिखा जाये । इस यात्रा में मेरे सहयोगी सहमित्र कामेश थे। बात २०१२ दिशंबर माह की है। उस समय एक दिन सायं में इस अमिताभ पार्क में जाने का अवसर प्राप्त हुआ । आपकी जानकारी के लिए बताते चलें की यह पार्क नॉएडा और और दिल्ली बार्डर पर नॉएडा में सेक्टर १५ मेट्रो स्टेशन के पास ही है । यहाँ पर आप पैदल या ऑटो से भी जा सकते है दूरी केवल १ किलोमीटर है । 

हम दोनों लोग पैदल ही घूमते हुए पार्क पहुँच गए । काफी बड़ा पार्क है और मनोरंजन के लिए झूलों के साथ साथ फब्बारे भी है । पार्क में घूमते ही कुछेक फोटो लिए और फिर हमे जानकारी मिली की ओखला पक्षी विहार भी यहीं पास में ही है । समय ना होने के कारण जाना नहीं हो सका अगली बार जब भी समय मिलेगा आराम से घूमेंगे । चलिए अब एक नजर कुछ फोटो पर :-

एक बार फिर अक्षरधाम मंदिर , दिल्ली का सफर

जैसा की पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि किस प्रकार पुराने किले और दिल्ली चिड़ियाघर का सफर करने के बाद हम लोग वापस आये । चूँकि समय कम होने के कारण अक्षरधाम मंदिर , दिल्ली (akshardham temple, delhi ) जाना नहीं हो सका । चलिए इसी सफर पर आज अक्षरधाम मंदिर , दिल्ली चलते हैं । २५ जून, दिन-शनिवार को सायं में अक्षरधाम मंदिर जाने का विचार बना । पुराने किले और दिल्ली चिड़ियाघर की तरह यहाँ भी हालाँकि में २ साल पहले आ चुका था । सायं ४ बजे ही हम लोग तैयार हो गए । ओला कैब (ola cab ) बुक करने के बाद हम लोग रवाना हुए और मयूर विहार होते हुए लगभग ४:५० बजे अक्षरधाम मंदिर पहुँच गए । उम्मीद से अधिक  भीड़ थी इसका कारण शनिवार का दिन था । 

अंदर पहुँचे सामान जमा करने के लिए फॉर्म लेकर भरने के ३० मिनट  बाद जमा किया । तब तक ५:१५ बज चुके थे । अब धीरे धीरे दर्शकों की भीड़ भी बढ़ने लगी थी । कुछ चेकिंग के बाद हम लोंगो ने मंदिर के मुख्य प्रांगड़ में प्रवेश किया । क्या सुन्दर नज़ारा था इसे वही लोग महसूस कर सकते हैं जो पहले यहाँ आये हो । पत्थरों पर की गयी सुन्दर नक्काशी और मूर्तियों की कलाकारी और सामने स्थित भव्य मंदिर काफी अच्छे लग रहे थे ।  साथ ही परिसर में स्थित म्यूज़ियम, फोटो प्रदर्शनी और वाटर बोटिंग सब कुछ अच्छा लग रहा था । 

एक बार फिर पुराना किला ,चिड़ियाघर , दिल्ली का सफर

अभी वीते सप्ताह नोएडा घर पर माँ और पिताजी का आना हुआ । यह मेरे लिए एक सुखद अनुभव था माँ और पिताजी पहली बार जो आ रहे थे । शाहजहाँपुर से साथ में ही ऐसी बस से मेरे साथ आये थे काफी दिनों से इच्छा थी मेरे कहने पर वो लोग तुरन्त राजी हो गए । काफी अच्छा लगा । दोपहर १ से रात्रि १० बजे तक ऑफिस होने के कारण सुबह में अच्छा समय मिल जाता है । पापा और मम्मी जी की दिल्ली घूमने की भी इच्छा थी ।  इसी सिलसिले में २२ जून, बुधवार  को इस यात्रा सफर के पहले चरण में पुराना किला और दिल्ली का चिड़ियाघर जाना तय हुआ । हालाँकि मैं एक बार पहले भी वहाँ जा चुका था लेकिन इस बार जाने का अलग अनुभव रहा ।

चलिए अब आगे सफर पर चलते हैं ।  दिल्ली और एनसीआर समेत पूरे भारत में ओला कैब सर्विस होने के कारण इस बार इसी से जाने का विचार किया ।  पापा और मम्मी जी सुबह जल्दी ही तैयार हो गए मैं भी नित्य कार्यों से निपटकर ८ बजे ही तैयार हो गया ।  ८:००  बजे सुबह इस सफर के लिए चल दिए ।  पापा और मम्मी जी के साथ दिल्ली भ्रमण की यह मेरी पहली यात्रा थी । इस सफर में पापा और मम्मी जी के अलावा मेरी पत्नी जी भी थी जो पहले भी नैनीताल और वैष्णों देवी यात्रा में मेरे साथ जा चुकी थी । सेक्टर १५ मेट्रो स्टेशन पहुँचे वहाँ से मेट्रो के द्वारा अक्षरधाम , यमुना बैंक और इन्द्रप्रस्थ स्टेशन होते हुए ८:३० बजे प्रगति मैदान स्टेशन पहुंचे । प्रगति मैदान स्टेशन से ही प्राइवेट ऑटो किया और ५० रुपये किराया देकर १० मिनट बाद ही हम पुराने किले में पहुँच गए ।

चण्डीगढ़ यात्रा : (Chandigarh Trip)

इस यात्रा सफर को शुरू से पड़ने के लिए क्लिक करें 

१७ अप्रैल , रविवार 
जैसा की पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि सायं ७ बजे हम कटरा से बस से रवाना हुए और नींद की वजह से आँख सीधे सुबह चंडीगढ़ बस स्टैंड पर खुली । यहाँ रुकने के लिए रेलवे स्टेशन के पास ही होटल में रिजर्वेशन था और अगले दिन दिल्ली जाने के लिए भी रिजर्वेशन । इसलिए आज का पूरा दिन हमारे पास घूमने के लिए था । बस से उतरे कई ऑटो वाले मिल गए एक से बात हुई होटल तक जाने के लिए १५० रूपए देकर सुबह ६:१० बजे होटल पहुंचे । रिसेप्शन पर २ ही बन्दे थे एक भी हलकी नींद में था । अपना ऑनलाइन रिजर्वेशन दिखाया चेक किया कहने लगा की आप जल्दी चेक इन कर रहे हैं उसका कुछ चार्ज अलग से देना होगा । हाँ कहते हुए आखिरकर रूम में पहुँचे, फ्रेश हुए और फिर रेस्ट किया । होटल में ही ब्रेकफास्ट भी शामिल था इसलिए दोपहर में चाय के साथ ब्रेकफास्ट भी कर लिया । होटल की सर्विस और रूम दोनों ही अच्छी थीं । फिलहाल तब तक २ बज गए थे अब समय था चंडीगढ़ घूमने का । मैंने आज का दिन सुखना झील, रॉक गार्डन और rose गार्डन देखने के लिए निश्चित किया था । 

२ बजे रूम से बाहर आये, काफी तेज़ धूप थी एक प्राइवेट ऑटो वाले से बात की १०० रूपए देकर सुखना झील पहुँचे, सच में इस झील को चंडीगढ़ की प्राकृतिक खूबसूरती कह सकते हैं । काफी अच्छा लगा । अंदर पहुँचकर कुछेक फोटो लिए और झील भ्रमण भी किया । कुछ लोग झील में बोटिंग भी कर रहे थे और कुछ लोग झील के पास ही टहल रहे थे  । झील परिसर में ही जलपान की अच्छी व्यवस्था है, साथ ही बच्चों के खेलने के लिए ही झूले भी हैं । झील के पीछे ही एक पर्वत श्रृंखला दिखायी देती है । मैंने एक स्थानीय व्यक्ति से इस बारे में पूंछा तो उसने बताया की इस झील के आगे वाले पहाड़ चंडीगढ़ से कालका होते हुए शिमला जाते समय दिखाई देते है । झील के पास में ही स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स भी है जो केवल स्टाफ के लिए है । हम लोगों ने कुछ पोटो लिए और जूस आदि नास्ता करने के बाद फिर पास में ही स्थित रॉक गार्डन के लिए चल दिए । 

चलो बुलाबा आया है : माँ वैष्णों देवी यात्रा ( Ma Vaishno Devi Yatra, Katra)

दिनांक : १४ अप्रैल , गुरुवार

वैसे तो इस यात्रा  की विधिवत शुरुआत कटरा, जम्मू से हुई । लेकिन मेरे लिए यह यात्रा १४ अप्रैल को ही शुरू हो गयी । पहले से पूर्व निर्धारित इस यात्रा का सबसे बड़ा फायदा इस यात्रा का सफलता पूर्वक संपन्न होना है ।

चलिए अब इस यात्रा सफर पर चलते हैं, १४ से १७ अप्रैल की ऑफिस से छुट्टी लेने के बाद १३ की सायं कालीन ड्यूटी करने के बाद, रात्रि ९ बजे ऑफिस से बाहर आकर सेक्टर ६२ से अपने घर जाने के लिए शहजहंपुर डिपो की बस का इंतज़ार करने लगे ।  किस्मत अच्छी थी की आनंदविहार बस स्टैंड नहीं जाना पड़ा और सेक्टर ६२ हाइवे से ही बस मिल गयी । मेरा अपनी पत्नी जी के साथ में अगले दिन यानि की १५ अप्रैल को सियालदह एक्सप्रेस से जम्मू का शाहजहांपुर से रिजर्वेशन था। इसीलिए एक दिन पूर्व ही अपने गृह जनपद जाना अनिवार्य था । फिलहाल बस मिली और भाग्य बस शीट भी, जो मेरे लिए प्रसन्नता की बात थी । ऑफिस करने की वजह से थकान भी आ रही थी और नींद भी । बस ५ मिनट रुकने के बाद चल दी । आगे हापुड़ पहुँचने से पहले ही घर पर आने की सूचना दे दी की सुबह तक आ जायेंगे । बस चलने के साथ साथ ठंडी हवा और खिड़की केपास शीट होने के कारण कब नींद आई पता ही नहीं चला । आँख जब खुली जब बस एक होटल पर रात्रि भोजन और जलपान के लिए रुकी । ३० मिनट रुकने के बाद बस चल दी और आगे मुरादाबाद, रामपुर और बरेली होते हुए सुबह के ६ बजे शाहजहांपुर पहुँच गए । पत्नी जी से बात हुई और शाहजहांपुर ही रुक गए । 



शाहजहांपुर की शान : हनुमतधाम (Hanumat Dham, Shahjahanpur)

दिनांक : २७ मार्च , दिन : रविबार 


अभी कुछ दिन पूर्व होली पर घर जाना हुआ । बड़े हर्ष उल्लास के साथ होली मनाई । होली के बाद घर से वापसी और नोएडा जाने से पूर्व ही हनुमतधाम जो की मेरे गृह जिले शाहजहांपुर में स्थित हैं, जाने का अवसर प्राप्त हुआ । वैसे तो शाहजहांपुर और पास के लोग पहले ही यहाँ जा चुके होंगे लेकिन कुछ जानकारी के लिए बताते चलें, कि अभी कुछ समय पूर्व निर्मित यह हनुमान जी का पावन  धाम है , जोकि जिले में विसरात रोड पर खन्नौत नदी के किनारे स्थित है । शहर के बस और रेलवे स्टैंड से २-३ किलोमीटर दूर है, यहाँ आप ऑटो, रिक्शा या फिर किसी भी प्राइवेट वाहन से बड़ी ही सुगमता से पहुँच सकते हैं । 

हनुमतधाम के पास ही काली माँ का पवन मंदिर है । शाम को यहाँ जाने में काफी अच्छा लगता है । चलिए इस सफर पर आगे चलते हैं । नैनीताल की तरह यहाँ भी अपनी पत्नी जी के साथ बाइक से जाना हुआ। हम लोग करीब सायं में ६ बजे हनुमतधाम पहुंचे, प्रसाद लेकर अंदर पहुंचे बड़ा ही सुन्दर दृश्य था ।

एक बार फिर नैनीताल का सफर (Once again on the way to Nainital)

काफी समय से ब्लॉग पर पोस्ट लिखने के बारे में सोच रहा था । अपनी शादी और व्यस्तता की वजह से कब जनबरी, फरबरी और मार्च गुजर गया पता ही नहीं चला । चलिए आज आप को एक बार फिर नैनीताल के इस खूबसूरत सफर पर लिए चलते हैं ।  ६ फरबरी को शादी समारोह और अन्य कार्यों की वजह से फरबरी माह में ही अपनी श्रीमती जी के साथ इस बार नैनीताल जाने का संयोग बना । 

हालांकि मैं पहले भी एक बार नैनीताल जा चुका था इस बार पत्नी जी के कहने पर अकस्मात ही प्रोग्राम बन गया । दिनांक १८ फरबरी, दिन गुरुबार की सुबह को इस यात्रा सफर की शुरुआत हुई । ऑफिस से मैंने पहले ही २ दिन गुरुबार और शुक्रबार का अवकाश ले लिया था, शनिवार और रविवार साप्ताहिक छुट्टी होने की वजह से ४ दिन हमारे पास थे । फिलहाल बुधवार को रात्रि ड्यूटी करने के बाद सुबह ही गाज़ियाबाद से अवध असम एक्सप्रेस पकड़कर बरेली तक जाना पड़ा। दुर्भाग्य से उस दिन यह ट्रैन लगभग ३ घंटे की देरी से चल रही थी । उधर मेरी पत्नी जी का फ़ोन आ रहा था की किस समय तक आप बरेली पहुँचोगे । 

अचानक प्रोग्राम बनाने का सबसे बड़ा नुकसान सफर के दौरान होता है ।  पहले तो एक बार को वैष्णो देवी माँ के मंदिर जम्मूतवी  जाने का मन हुआ । लेकिन वहां फिर कभी जाने के इरादे से नैनीताल जाना ही उचित लगा । चलिए अब यात्रा बृत्तान्त पर आगे चलते है । ऑफिस से रात्रि ड्यूटी करने के बाद सुबह गाज़ियाबाद स्टेशन पहुंचे , अवध असम (गुवाहाटी  एक्सप्रेस ) ट्रैन ११:२५ मिनट पर आयी जिसका यहाँ पहुँचने का निर्धारित समय ८ बजकर ४५ मिनट था । ट्रैन में भीड़ तो थी लेकिन फिर भी हापुड़ से आगे ऊपर की बर्थ पर शीट मिलने से रात्रि में जगे होने की कारण नींद से काफी आराम मिला । मुरादाबाद और  रामपुर होते हुए ट्रैन करीब ४:१५ बजे सायं को बरेली पहुंची । मेरी पत्नी जी तब तक अपने भाई जी के साथ १५ मिनट पहले ही बाघ एक्सप्रेस से यहाँ पहुँच गयीं थीं ।