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पिछले यात्रा बृतान्त में आपने कुतुबमीनार के बारे में पढ़ा । कुतुबमीनार दर्शन के बाद हम लोग वापस मेट्रो से अगले ही स्टेशन छतरपुर आ गए । अब समय था यहाँ के मंदिर को देखने का । मेट्रो से बाहर आकर मंदिर जाने का रास्ता पता किया । एक सज्जन ने बताया कि मंदिर बस पास में ही है पैदल ही जा सकते हो । मेट्रो के पास में ही एक जगह बड़ी मुश्किल से बेकार चाय पी गयी । खैर आगे से बाएं मुड़कर मंदिर के लिए रास्ता जाता है । मंदिर इस चौराहे से ५०० मीटर ही दूर है । पैदल ही मंदिर के पास पहुंचे । एक दुकानदार प्रशाद बेंच रहा था ५१ रुपये का प्रशाद ले लिया । मंदिर समिति ने मुफ्त में ही जूते -चप्पलों को टोकन के हिसाव से जमा करवाने की व्यवस्था की है । ऐसी ही व्यवस्था कमल मंदिर (लोटस टेम्पल ), कालकाजी और अक्षरधाम मंदिर दिल्ली में पहले मैंने देखी थी । हमने भी अपने जूते चप्पल जमा कर के टोकन ले लिए ।
पिछले यात्रा बृतान्त में आपने कुतुबमीनार के बारे में पढ़ा । कुतुबमीनार दर्शन के बाद हम लोग वापस मेट्रो से अगले ही स्टेशन छतरपुर आ गए । अब समय था यहाँ के मंदिर को देखने का । मेट्रो से बाहर आकर मंदिर जाने का रास्ता पता किया । एक सज्जन ने बताया कि मंदिर बस पास में ही है पैदल ही जा सकते हो । मेट्रो के पास में ही एक जगह बड़ी मुश्किल से बेकार चाय पी गयी । खैर आगे से बाएं मुड़कर मंदिर के लिए रास्ता जाता है । मंदिर इस चौराहे से ५०० मीटर ही दूर है । पैदल ही मंदिर के पास पहुंचे । एक दुकानदार प्रशाद बेंच रहा था ५१ रुपये का प्रशाद ले लिया । मंदिर समिति ने मुफ्त में ही जूते -चप्पलों को टोकन के हिसाव से जमा करवाने की व्यवस्था की है । ऐसी ही व्यवस्था कमल मंदिर (लोटस टेम्पल ), कालकाजी और अक्षरधाम मंदिर दिल्ली में पहले मैंने देखी थी । हमने भी अपने जूते चप्पल जमा कर के टोकन ले लिए ।
चलिए अब कुछ मंदिर के बारे में छतरपुर के मंदिर को मुख्य रुप से कात्यायनी सिद्धपीठ मंदिर समूह के नाम से जानते है । कहते है कि यह अक्षरधाम मंदिर दिल्ली के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर समूह है । मंदिर परिषर काफी बड़ा है । साथ ही मंदिर में ही ३००० किलो का एक घंटा भी है और मुख्य मंदिर में स्वर्ण और चांदी से निर्मित कई मूर्तियां और दीवारे भी है । नवरात्रों के दिनों में अपेक्षाकृत अधिक भीड़ रहती है । पर आज शनिवार का दिन होने के कारण आज ज्यादा तो नहीं लेकिन थोड़ी बहुत भीड़ थी । मंदिर के अंदर पहुंचे सच कहें तो शांति और इतना सुदंर मंदिर परिशर देखकर मन प्रशन्न हो गया । बड़े ही सुकून से मंदिर दर्शन किये और प्रशाद इत्यादि चढ़ाकर करीब २ घंटे का समय बिताकर बाहर आये । तब तक शाम भी हो चली थी । वापस मेट्रो स्टेशन आते समय मृगना को भूंख लगी थी एक जगह खस्ता कचोड़ी खायी गयी । अब वापस नॉएडा चलने का समय हो गया था । मेट्रो स्टेशन पहुंचे टोकन लेने के लिए काफी लंबी लाइन लगी थी । ४५ मिनट लाइन में लगने के बाद टिकट लेकर मेट्रो से राजीव चौक स्टेशन होते हुए नॉएडा वापस आये ।
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